भारतीय समाज में जब भी कोई अपराध होता है और पुलिस किसी आरोपी को पकड़ती है, तो अक्सर मीडिया में उसकी तस्वीर दिखाई जाती है, लेकिन चेहरे को ढककर। यह सवाल आम जनता के मन में उठता है कि जब अपराधी पकड़ा गया है, तो उसका चेहरा क्यों नहीं दिखाया जा रहा? क्या यह उसकी सुरक्षा के लिए है? क्या इससे न्याय प्रक्रिया पर कोई प्रभाव पड़ता है? क्या कानून में इसका कोई प्रावधान है? इस लेख में हम इन्हीं सभी पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे।
आपराधिक न्याय प्रणाली का मूल सिद्धांत: "जब तक दोष सिद्ध न हो, तब तक निर्दोष"
भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) और संविधान के अनुसार, किसी भी व्यक्ति को तब तक अपराधी नहीं माना जा सकता, जब तक कि उस पर लगे आरोप साबित न हो जाएं। यह "Presumption of Innocence" का सिद्धांत है। इसका मतलब यह है कि भले ही कोई व्यक्ति किसी गंभीर अपराध के आरोप में गिरफ्तार किया गया हो, लेकिन जब तक न्यायालय उसे दोषी नहीं ठहराता, तब तक वह कानूनी रूप से निर्दोष ही माना जाता है।
चेहरा दिखाने से समाज में यह धारणा बन जाती है कि वह व्यक्ति अपराधी है, जिससे उसकी प्रतिष्ठा और भविष्य दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
न्यायिक प्रक्रिया पर प्रभाव
यदि किसी आरोपी का चेहरा सार्वजनिक कर दिया जाए, तो न्यायिक प्रक्रिया पर प्रभाव पड़ सकता है। यह जूरी या न्यायाधीश के निर्णय को प्रभावित कर सकता है, खासकर हाई-प्रोफाइल मामलों में जहाँ मीडिया कवरेज अधिक होती है। समाज का दबाव, मीडिया ट्रायल और जनता की राय, सभी आरोपी के खिलाफ पूर्वग्रह (bias) बना सकते हैं।
मानवाधिकार और निजता का अधिकार
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 हर नागरिक को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। यह अधिकार उन आरोपियों को भी मिलता है जिन पर अपराध का संदेह है। आरोपी का चेहरा सार्वजनिक करना, उसकी निजता (Privacy) का उल्लंघन माना जा सकता है।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और सुप्रीम कोर्ट ने भी कई बार कहा है कि आरोपी के साथ भी कानून के अनुसार व्यवहार होना चाहिए। चेहरा दिखाना एक तरह से सामाजिक शर्मिंदगी (Social Stigma) और मानसिक उत्पीड़न (Mental Harassment) का कारण बन सकता है।
गलत पहचान और फर्जी आरोपों से सुरक्षा
कई बार ऐसा होता है कि पुलिस द्वारा पकड़ा गया व्यक्ति गलत हो सकता है या उसके खिलाफ आरोप बाद में झूठे साबित होते हैं। अगर उसका चेहरा सार्वजनिक कर दिया जाए, तो समाज में उसकी पहचान एक अपराधी के रूप में हो जाती है, जिससे उसके जीवन में स्थायी बदनामी आ सकती है।
इसलिए जब तक आरोप साबित न हो जाएं, पुलिस आरोपी की पहचान छुपाकर उसका संरक्षण करती है।
पीड़ित की पहचान की रक्षा
कुछ मामलों में, जैसे कि बलात्कार, यौन उत्पीड़न, या नाबालिग से जुड़ी घटनाओं में आरोपी का चेहरा छुपाना पीड़ित की पहचान को बचाने के लिए भी किया जाता है। अगर आरोपी का चेहरा सार्वजनिक किया जाए और वह पीड़िता का रिश्तेदार या जानकार हो, तो पीड़िता की पहचान भी उजागर हो सकती है।
यह भारतीय कानून, विशेषकर POCSO Act और Section 72 of BNS, के तहत निषेध है।
पुलिसिया जांच को सुरक्षित बनाए रखना
कई बार पुलिस को आरोपी से आगे की पूछताछ करनी होती है, या फिर उससे जुड़े अन्य लोगों की तलाश होती है। ऐसे में अगर आरोपी की पहचान सार्वजनिक हो जाती है, तो जांच प्रभावित हो सकती है। सह-अपराधी भाग सकते हैं या सबूतों से छेड़छाड़ हो सकती है।
इसलिए पुलिस रणनीति के तहत भी आरोपी का चेहरा ढंका जाता है ताकि जांच गोपनीय और प्रभावी बनी रहे।
मीडिया ट्रायल की बढ़ती प्रवृत्ति
आजकल मीडिया में हर केस पर “Breaking News” बन जाती है। कई बार मीडिया द्वारा आरोपी को पहले ही “अपराधी” घोषित कर दिया जाता है, जिससे न केवल व्यक्ति विशेष को नुकसान होता है, बल्कि पूरे न्यायिक ढांचे पर सवाल खड़े होते हैं। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने भी इस पर चिंता जताई है और मीडिया को संयम बरतने की सलाह दी है।
कानूनी दिशा-निर्देश और न्यायालय के निर्णय
भारत में अभी तक कोई ऐसा केंद्रीय कानून नहीं है जो पुलिस को स्पष्ट रूप से यह निर्देश देता हो कि आरोपी का चेहरा ढकना अनिवार्य है। लेकिन समय-समय पर न्यायालयों ने इस विषय पर दिशा-निर्देश (Guidelines) दिए हैं।
उदाहरण के लिए:
सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Youth Bar Association of India vs Union of India, 2016): कोर्ट ने कहा था कि एफआईआर को सार्वजनिक किया जा सकता है लेकिन आरोपी की निजता की रक्षा भी उतनी ही महत्वपूर्ण है।
दिल्ली हाई कोर्ट और बॉम्बे हाई कोर्ट ने भी कहा है कि जांच पूरी होने से पहले आरोपी की फोटो या पहचान सार्वजनिक करना, उसके अधिकारों का उल्लंघन हो सकता है।क्या पुलिस हमेशा चेहरा छुपाती है?
यह भी ध्यान देने योग्य है कि हर केस में पुलिस चेहरा नहीं छुपाती। कई बार यदि अपराधी को रंगे हाथों पकड़ा गया हो, या मीडिया पहले से मौजूद हो, या फिर अपराध बहुत जघन्य हो, तो चेहरा सार्वजनिक किया जाता है। यह पुलिस के विवेक और मामले की संवेदनशीलता पर निर्भर करता है।
किसी भी लोकतांत्रिक और न्यायिक व्यवस्था में आरोपी को भी उतना ही अधिकार प्राप्त होता है जितना पीड़ित को। आरोपी का चेहरा छुपाना कानून, नैतिकता और मानवाधिकार के मूल सिद्धांतों के अनुरूप है। यह न्याय प्रक्रिया की निष्पक्षता को बनाए रखने, आरोपी के अधिकारों की रक्षा करने, और समाज में गैरजरूरी पूर्वग्रह फैलने से रोकने का एक प्रयास है।
हालांकि, इस प्रक्रिया में पारदर्शिता और जिम्मेदारी भी उतनी ही जरूरी है ताकि कानून का दुरुपयोग न हो। अंततः, कानून का उद्देश्य न केवल अपराध को सज़ा देना है, बल्कि यह सुनिश्चित करना भी है कि निर्दोष को किसी भी हाल में अन्याय न सहना पड़े।
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