jail me fansi kaise di jati hai |
फांसी यह वो शब्द है जिसे सुनकर ही अपराधी की रूह काँप जाती है | लेकिन क्या आप जानते है फांसी कैसे दी जाती है | जिस रस्सी से फांसी का फंदा बनता है वह रस्सी कहा बनाई जाती है | और फांसी से पहले अपराधी के साथ क्या किया जाता है | चलिए जानते है
फांसी की प्रक्रिया शुरू होती है ब्लैक वारंट से | जैसे ही भारत के राष्ट्रपति किसी दोषी की मर्सी पिटीशन खारिज कर देते हैं | वैसे ही जेल प्रशासन कोर्ट से ब्लैक वारंट की मांग करता है | इस ब्लैक वारंट में फांसी की जगह तारीख और समय लिखा होता है | जिसके बाद फांसी की तैयारी शुरू हो जाती है | फांसी की तैयारी में सबसे पहले काम होता है जल्लाद को ढूंढना और फांसी का फंदा तैयार करना | फांसी का फंदा किसी आम रस्सी से तैयार नहीं किया जाता | यह एक तरह की खास रस्सी होती है जिसे मनीला रस्सी कहा जाता है | यह रस्सी पूरे भारत में सिर्फ बिहार की बक्सर जेल में बनती है | इस रस्सी से बना फांसी का फंदा जब जेल पहुंच जाता है तो सबसे पहले फांसी का ट्रायल यानी फांसी की प्रैक्टिस शुरू की जाती है | इसके लिए फांसी पर चढ़ाए जाने वाले अपराधी का वजन उसकी लंबाई और उसकी गर्दन का नाप लिया जाता है | फिर उसी आकार का एक सेंड बेग रस्सी पर झुलाया जाता है | और देखा जाता है की रस्सी टूट तो नहीं रही है या फिर फांसी पर लटकाने में कोई समस्या तो नहीं आ रही है | अगर कोई समस्या आ रही है तो उसे ठीक किया जाता है |
prison |
अब जिस कैदी को फांसी देनी होती है उसे फांसी से थोड़े दिन पहले बाकी सब कैदियों से अलग करके फांसी कोठी में डाल दिया जाता है | जो जेल में बिलकुल अलग गजह पर होती है | इसी में फांसी देने वाले कैदी को रखा जाता है | और उस कैदी को 24 घंटे में सिर्फ थोड़ी देर के लिए ही टहलने के लिए बहार निकाला जाता है | इस फांसी कोठी की निगरानी का विशेष इंतजाम किया जाता है | फांसी लगने वाले कैदी पर विशेष नजर रखी जाती है की वह ख़ुदकुशी ना कर ले | और इसी को देखते हुए उस कैदी के पाजामे में नाडा भी नहीं रखने दिया जाता है | कैदी को इस फांसी कोठी में इसलिए शिफ्ट कर दिया जाता है ताकि वह फांसी की तैयारी ना देख सके | फांसी से पहले अगर कैदी अपनी वसीयत किसी के नाम करना चाहता है तो इसकी भी व्यवस्था की जाती है | जिसके लिए मजिस्ट्रेट को जेल पर बुलाया जाता है और उसके सामने ही कैदी की वसीयत लिखवाई जाती है | यही नहीं अगर फांसी से पहले कैदी अपने किसी रिश्तेदार से मिलना चाहे तो उसे भी उससे मिलवाया जाता है | अगर कैदी कुछ खाना चाहे तो वो भी मंगवाया जाता है |
फिर आता है फांसी का दिन
फांसी के दिन कैदी को सुबह जल्दी उठा दिया जाता है | फिर उसे नहाने और नए कपड़े पहनने के लिए कहा जाता है | फांसी की सुबह कैदी से चाय के लिए पूछा जाता है | फिर डॉक्टर उसकी जाँच करते है | उसके बाद उसे फांसी कोठी से बहार निकालकर फांसी के फंदे तक लाया जाता है | जेल मेन्युअल के अनुसार फांसी के वक्त वहा पर डॉक्टर, मजिस्ट्रेट, जेलर, सुरक्षा गार्ड और जल्लाद मौजूद होते है | डॉक्टर का काम वहा पर उस अपराधी की मौत की पुस्टि करना होता है | जेलर और सुरक्षाकर्मी सुरक्षा व्यवस्था का ध्यान रखते है | जल्लाद फांसी देता है और यह सारी प्रकिर्या मजिस्ट्रेट की देखरेख में की जाती है | उसके बाद उस कैदी को फांसी की जगह पर खड़ा कर दिया जाता है और जल्लाद कैदी के हाथ पैर बांधता है और उसके चेहरे को काले कपडे से ढक देता है | फांसी की प्रक्रिया के दौरान वहा पर उपस्थित कर्मचारी आपस में बात नहीं करते है | हर तरफ खामोशी होती है |
फिर फांसी के तय समय का इन्तजार किया जाता है | समय होने पर पर जेलर अपने साथ में से रुमाल नीचे गिरा देता है | और जैसे ही जेलर रुमाल गिराता है उसके बाद जल्लाद लीवर खींच देता है और वह कैदी फांसी के फंदे पर लटक जाता है | इसके बाद थोड़ी देर तक उस कैदी के मरने का इंतजार किया जाता है | और इसके कुछ देर बाद वहां मौजूद डॉक्टर कैदी की नस चेक करता है और पता लगाता है की कैदी मर गया या जिन्दा है | जब डॉक्टर मृत घोषित कर देता है उसके बाद ही कैदी को फांसी के फंदे से निचे उतारा जाता है | उसके बाद उसका पोस्टमार्टम किया जाता है और फिर लाश को अंतिम किर्या कर्म के लिए परिवार वालो को दे दिया जाता है | इस पूरी कार्रवाई के दौरान जब तक फांसी की प्रक्रिया खत्म नहीं हो जाती तब तक जेल में हर काम रोक दिया जाता है | बाकि कैदी अपने सेल में होते हैं और जेल में किसी भी तरह की कोई मूवमेंट नहीं होती है | लेकिन जैसे ही फांसी की प्रक्रिया खत्म हो जाती है वैसे ही जेल की जिंदगी फिर से शुरू हो जाती है |