court me geeta ki kasam kyu khate hai
''मैं गीता पर हाथ रखकर कसम खाता हूं कि मैं जो कुछ भी कहूंगा सच कहूंगा सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा'' आपने इस तरह कोर्ट में गवाह को कसम लेते हुए देखा होगा तो क्या सच में हमारे कोर्ट में ऐसा होता है और होता है तो किस कारण की वजह से ऐसा होता है और यह प्रथा क्यों और कब सुरु की गयी चलिए जानते है ?
भारत में मुगलों के शासन के वक्त से धार्मिक ग्रंथो पर हाथ रखकर कसम खाने की प्रथा शुरू की गई थी | क्योंकि उस समय पर लोगों का अपने धर्म के प्रति काफी झुकाव था | और यह माना जाता था कि अगर कोई भी भारतीय अपने धार्मिक ग्रंथ पर हाथ रखकर कसम खा रहा है तो फिर वह झूठ नहीं बोलेगा | यही से इसी same process को ब्रिटिशर्स भी अडॉप्ट कर लेते हैं| और इसके लिए उन्होंने indian oths act 1873 कानून बनाया | जिसका हर Indian Court में समान रूप से पालन होने लगा | आजादी के कई साल बाद तक भी इस कानून को फॉलो किया जाता था | 1950s 1960 तक हिंदू गीता की मुस्लिम कुरान की क्रिश्चियन बाइबल की हर धर्म का इंसान अपनी धार्मिक ग्रंथ की कसम खाता था आजादी के बाद तक भी |
यह पूरा सिलसिला खत्म हुआ 1969 में जब Law Commission ने अपनी 28th LAW COMMISSION'S REPORT में oths act 1873 के इस कानून में कुछ सुधार करने के लिए सजेशन दिए | इन्हीं सब सुझावो के चलते 1873 के इस कानून की जगह आया Oths Act 1969 जो अभी तक फॉलो किया जाता है | और यह बदलाव सिस्टम को और uniform & secular बनाने के लिए किये गए | ताकि देश का हर एक नागरिक अलग अलग किताबो पर हाथ रख कर शपथ ना खाये कसम ना ले | बल्कि बल्कि एक ही तरिके से सब शपथ ग्रहण करे की ''मैं ईश्वर को साक्षी मानकर यह शपथ लेता हु कि जो कुछ भी कहूंगा सच कहूंगा, सच के सिवा कुछ नहीं कहूंगा''
ओथ एक्ट 1969 में एक और अहम व्यवस्था की गई है की 12 साल से कम उम्र के बच्चे को गवाही देने के लिए कसम खाने की जरूरत नहीं होती। उसकी गवाही सीधे मान्य होती है।
लेकिन क्या होगा यदि कोई जानभूझकर झूठी कसम खा ले या झूठी गवाई देदे । जैसे जब हम छोटे होते है तो खेल खेलते समय जानभूझकर जूठी कसम खा लेते है की में तो आउट नहीं हुआ हु | क्या होगा यदि कोर्ट में कोई झूठी कसम खाता है या झूठा evidence देता है तो ऐसा करना ipc के section 193 के तहत दंडनीय अपराध है जो यह कहता है कि यदि कोई इंसान जो झूठ बोल रहा है झूठी कसम खा रहा है या झूठ एविडेंस प्रेजेंट कर रहा है कोर्ट का फैसला बदलने के लिए तो उसे 7 साल तक जेल की सजा और जुर्माने की सजा सुनाई जा सकती है तो आज हमने जाना की आज के समय में कोई भी य्यक्ति कोर्ट में गीता या कुरान पर हाथ रखकर कसम नहीं खाता है जैसा की हमें फिल्मो में दिखया जाता है |